क्रिकेट में यशस्वी जायसवाल का यश यूं ही नहीं फैला। पीछे सफलता के धागे में मां-बाप और खुद यशस्वी के दर्द भरे मोती पिरोए हैं। पिता छोटे कारोबारी हैं और मां कंचन एक प्राइवेट टीचर। उनके दो पुत्रों यशस्वी व तेजस्वी को बचपन से क्रिकेटर बनना था। यशस्वी में क्रिकेट का जुनून चढ़ा था। वह सचिन जैसा क्रिकेटर बनना चाहता था। शुरू में सीमेंट के पिच पर पिता ने क्रिकेट की एबीसीडी सिखाई। बाद में चाचा ने उसे मुंबई में अपने यहां बुलाया। वहां पर उसने कैंटीन और डेयरी की दुकान पर काम किया। पानी-पूरी भी बेची।
2012 में उसने आजाद मैदान में मुस्लिम यूनाइटेड क्लब के लिए सेंचुरी मारने की शर्त जीतकर उसने क्रिकेट की पहली सीढ़ी चढ़ी तो पीछे पलटकर नहीं देखा। मैदान में ही उसे रहने का ठिकाना मिल गया, लेकिन कमरा नहीं मिला। घास में ही सोता था तो चींटियां काटती थीं। कई रातें उसकी भूखे पेट ही कटीं, लेकिन मां को बताता कि वह दही-बड़ा खाया है और गद्देदार बिस्तर पर सोया है। अपनी परेशानी वह छुपाता था, लेकिन छोटे बेटे तेजस्वी से उसका संघर्ष पता चल जाता था। आज उसका चयन आइपीएल में हुआ तो वह लोग भी सुरियावां स्थित उसके घर पर पहुंचे बधाई देने के लिए, जो जलते थे उससे। मां कंचन सिर्फ रोए जा रही थीं, लेकिन यह आंसू दुख के नहीं बल्कि खुशी के निकल रहे थे।
कंचन ने बताया कि बेटे के संघर्ष के पीछे उसका परिश्रम है। बुधवार की रात साढ़े नौ बजे उससे बात हुई थी, लेकिन वह अपने भविष्य को लेकर परेशान था। असमंजस में था कि क्या होने वाला है उसके साथ। मुझे ढाई करोड़ नहीं चाहिऐ, चाहत है तो सिर्फ यशस्वी के यश की। वह क्रिकेट खेले फिर भारतीय टीम की जर्सी भी पहने, तब पूरी होगी मां-बाप के दिल की हसरत। गुरुवार को आइपीएल की नीलामी में यशस्वी को राजस्थान रायल्स ने 2.40 करोड़ में खरीदा।
जायसवाल जब उत्तर प्रदेश के भदोही से मुंबई गए थे तब उनकी उम्र महज 11 साल थी और उन्हें टेंट में रहना पड़ता था। यहीं से उन्होंने क्रिकेटर बनने के सपने को साकार किया। जायसवाल दक्षिण अफ्रीका में जनवरी-फरवरी में खेले जाने वाले अंडर-19 विश्व कप के लिए चुनी गई भारतीय टीम का हिस्सा हैं। उन्होंने नीलामी में टीम के कप्तान प्रियम गर्ग (1.90 करोड़, सनराइजर्स हैदराबाद) को पीछे छोड़ दिया।
नीलामी के बाद उन्होंने कहा, ‘मैं काफी खुश हूं। मेरे लिए यह सीखने का काफी अच्छा मौका होगा। मेरे लिए अपना नाम बनाने का मंच है।’ यशस्वी इस साल विजय हजारे ट्रॉफी में 154 गेंद में 17 चौके और 12 छक्के से सजी 203 रन की पारी खेलकर लिस्ट-ए क्रिकेट में दोहरा शतक लगाने वाले सबसे युवा बल्लेबाज बने थे। उन्होंने सत्र में तीन शतक की मदद से 564 रन बनाए, जहां उनका औसत 112.80 का था।
इनपुट : जागरण